23.48 प्रतिशत दिल्लीवालों में कोरोना के बाद बनी ऐंटिबॉडी : सर्वे

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना किस हद तक फैला है इसकी रिपोर्ट आ गई है। सीरो सर्वे से पता चला है कि दिल्ली की 23.48 फीसदी आबादी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुकी है। इसका एक मतलब यह भी है कि दिल्ली के हर चौथे शख्स में एंटीबॉडीज डिवेलप हो चुकी है। बता दें कि दिल्ली में कोरोना के मामलों में अब गिरावट आ रही है। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया भी कह चुके हैं कि दिल्ली में कोरोना संभवत अपने पीक पर पहुंच चुका है। ऐसे में अब दिल्ली के के हर्ड इम्युनिटी हासिल करने यानी कोरोना प्रूफ होने की उम्मीद बढ़ गई है।

हेल्थ मिनिस्ट्री ने जताई राहत
डेटा जारी करते हुए हेल्थ मिनिस्ट्री ने राहत जताई। कहा कि महामारी के 6 महीने बीत जाने के बाद भी दिल्ली में 23.48 फीसदी लोग ही इसकी चपेट में हैं। सरकार ने कहा कि ऐसा कोरोना लॉकडाउन लगाने, कंटेनमेंट जोन बनाने की वजह से हुआ है। लोगों के सहयोग की भी तारीफ की गई है।

कैसे हुआ था सीरो सर्वे
सीरो सर्वे में दिल्ली के सभी 11 जिलों को कवर किया गया। सर्वे में शामिल टीमों ने सहमति लेने के बाद कुछ चुनिंदा लोगों के खून के नमूने लिए। इसके बाद इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकर रिसर्च के मानकों के मुताबिक ऐंटिबॉडी टेस्ट किया गया। इस सर्वे में लैब स्टैंडर्ड के मुताबिक 21 हजार 387 सैंपल जमा किए गए। इस टेस्ट की मदद से यह जाना गया कि आखिर कितने लोगों के अंदर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ऐंटिबॉडी तैयार हो चुकी है। इस सर्वे में एंटीबॉडीज का रैपिड टेस्ट करके पता लगाया गया कि शख्स में कोरोना एंटीबॉडी बनी है या नहीं। इससे पता लगता है कि क्या शख्स कभी कोरोना के संपर्क में आया था या नहीं।

दिल्ली का पॉजिटिविटी रेट जून महीने में चिंता का विषय था। 8-14 जून के बीच यह 32 प्रतिशत तक पहुंच गया था। लेकिन इस हफ्ते यह गिरकर सिर्फ 7 प्रतिशत पर रह गया है। पॉजिटिविटी रेट ये यहां मतलब है कि कितने टेस्ट पर कितने लोग कोरोना पॉजिटिव मिले।

राजधानी में जब टेस्टिंग बढ़ी तो एक-एक दिन में करीब 4 हजार तक संक्रमित लोग सामने आए। लेकिन अब स्थिति सुधर रही है। सोमवार को कुल 954 केस सामने आए। 49 दिनों बाद 1000 से कम मामले सामने आए थे।

दिल्ली में वैसे कुल केसों की संख्या 1 लाख 23 हजार के पार पहुंच गई है लेकिन ऐक्टिव केसों की बात करें तो दिल्ली में अभी सिर्फ 15 हजार ऐक्टिव केस हैं। इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है जो राहत की बात है। दिल्ली इकलौता ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है जहां हफ्तों तक लगतार ऐक्टिव केसों की संख्या में कमी होती रही है।
टेस्टिंग में सबसे आगे दिल्ली
हो सकता है आपको यह जानकार हैरानी हो लेकिन यही सच है कि भारत में सबसे ज्यादा टेस्ट दिल्ली में ही हो रहे हैं। प्रति दस लाख जनसंख्या पर टेस्टिंग के मामले में दिल्ली सबसे आगे। यहां 13 से 19 जुलाई के बीच रोजाना 1 लाख 30 हजार से 1 लाख 50 हजार के बीच टेस्टिंग हुई। तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा आदि सभी राज्य दिल्ली से पीछे।
​रिकवरी रेट में नैशनल रेट से आगे दिल्ली
दिल्ली में कोरोना के ठीक हुए मरीजों का रेट यानी रिकवरी रेट 84 प्रतिशत है। भारत के रिकवरी रेट की बात करें तो यह फिलहाल 63 प्रतिशत है। दिल्ली उन राज्यों में शामिल है जिनका रिकवरी रेट सबसे बेहतर है।

दिल्ली में शुरुआत में कोरोना मरीजों के लिए बेडों की कमी का मामला सामने आया था। फिर धीरे-धीरे सरकारी बेडों की संख्या बढ़ाकर 11,874 तक लेकर जाई गई। फिलहाल दिल्ली में 77 प्रतिशत कोरोना बेड खाली हैं। ऐसा होने के पीछे होम आइसोलेशन का अहम योगदान है।
​मृत्यु दर से थोड़ी चिंता
भारत में ऐक्टव केस भले 16 हजार के नीचे आ गए हैं लेकिन मृत्यु दर अभी चिंता की वजह बना हुआ है। दिल्ली में अबतक कोराना से 3663 मौत हो चुकी हैं। दिल्ली मे मृत्यु दर 3 प्रतिशत के करीब है जो कि भारत के औसत 2.4 प्रतिशत से ज्यादा है।

सीरो सर्वे के रिजल्ट में कई अहम तथ्य
सर्वे में इस बात का भी पता चला कि ज्यादातर संक्रमित व्यक्ति एसिम्पटोमेटिक थे। सर्वे के अनुसार, राजधानी की घनी आबादी के बाद भी महज 23.48 फीसदी लोग ही इस जानलेवा वायरस से प्रभावित हुए।

-सर्वे में यह भी कहा गया है कि अभी भी राज्य की बड़ी आबादी असुरक्षित है। इसलिए ऐहतियाती कदम लगातार जारी रखने की जरूरत है। फिजकल डिस्टेंसिंग, फेस मास्क समेत साफ-सफाई का ख्याल रखना जरूरी है।

क्या है हर्ड इम्यूनिटी
हर्ड इम्युनिटी मेडिकल साइंस का एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है। इसके तहत देश की आबादी का एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित कर दिया जाता है। ताकि वो इस वायरस से इम्यून हो जाएं। यानी उनके शरीर में वायरस को लेकर एंटीबॉडीज बन जाएं। इससे भविष्य में कभी भी वो वायरस परेशान नहीं करेगा।

अगर राजधानी की 60-70 फीसदी आबादी कोरोना से पीड़ित हो जाए और लोगों में इसका एंटीबॉडी बन जाए। जब वायरस एक शरीर से दूसरे शरीर में ट्रांसफर होगा तो उसकी क्षमता धीरे-धीरे कम होते जाती है और धीरे-धीरे यह खत्म हो जाता है। ऐसे में कमजोर वायरस को फिर से फैलने के लिए किसी मजबूत वायरस की जरूरत पड़ती है। हालांकि हर्ड इन्यूनिटी पर अभी भी विशेषज्ञों में मतभेद हैं और कई विशेषज्ञ तो इसे खतरा भी बताते हैं।