बिना शोर-शराबा से पहले कार्यकाल में पास होने वाले CAB को लेकर इस बार इतना हंगामा क्यों है बरपा
पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर विरोध और आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। आज भी जामिया छात्र गृहमंत्री के आवास तक मार्च निकालेंगे और दिल्ली के मंडी हाउस से मार्च शुरू होगा। विरोध प्रदर्शन की स्थिति को देखते हुए दिल्ली के मंडी हाउस इलाके में धारा 144 लागू कर दी गई है और बड़े पैमाने पर पुलिस बलों को तैनात किया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 संसद के दोनों सदनों से पास होने का बाद कानून का रूप ले चुका है। जिसके अंतर्रगत पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन इसके बाद पूरे देश में प्रदर्शन से लेकर हिंसा के कई दौर देखने को मिले। बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है कि नागरिकता विधेयक को संसद में पेश किया गया हो। इससे पहले मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान इसी वर्ष 8 जनवरी को यह लोकसभा में न सिर्फ पेश हुआ बल्कि पारित भी हो चुका है। लेकिन इसके बाद पूर्वोत्तर में इसका हिंसक विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया। कैब को बतौर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में पास कराया था। सरकार का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यह विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया। तब उसमें भी यही सारे प्रावधान थे, लेकिन इस बार जितना विरोध उस दौर में नहीं देखने को मिला था। जबकि मोदी सरकार पार्ट-2 के दौरान महज दो बदलावों के साथ संसद के दोनों सदनों से कुशल फ्लोर मैनेंजमेंट की वजह से पास करवा लिया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर के राज्यों की चिंताओं को देखते हुए नए संशोधन बिल में अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के भीतरी इलाकों को (inner line permit areas) को इसके दायरे से बाहर रखा। इसके अलावा इस विधेयक में उन इलाकों को भी सुरक्षा दी गई है, जो 6वीं अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों में आते हैं।
विधेयक के ड्राफ्ट में ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड धारक के बारे में भी प्रावधान किया गया है। पिछले बार के बिल के विपरीत, जिस विधेयक को मंजूरी दी गई वह ओसीआई कार्ड धारक को सुनवाई का मौका देने की बात करता है, यदि वह किसी अन्य कानून का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है।
इस बार जिस तरह से इस बिल के पास होने के बाद धार्मिकता वाला रंग देखने को मिला जबकि उस दौर में प्रदर्शन सिर्फ पूर्वोत्तर राज्य तक ही सीमित रह गए थे। कहीं इस तरह का आक्रोश देखने को नहीं मिला था, जैसा कि इस बार बिल पेश करने से कहीं पहले से ही दिखने लग गया था। सोशल मीडिया के जरिए कहा जा रहा है कि राजनाथ सिंह ऐसे गृहमंत्री थे, जिन्होंने देश में अनावश्यक विवाद पैदा करने वाले मुद्दे नहीं उठने दिए, लेकिन अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद विवादित मुद्दों की जैसे बाढ़ आ गई है। राजनाथ सिंह की मुश्किल यह है कि वे यह समझ नहीं पा रहे कि यह धारणा उनके लिए ‘पॉजिटिव’ है या ‘नेगेटिव।’ 2019 में जब गृह मंत्रालय लेकर उन्हें रक्षा मंत्रालय दिया गया था, तब इस कयास को और ज्यादा बल मिला था। कुछ लोग इस राय के रहे हैं कि पार्टी गृह मंत्रालय के जरिए कुछ बड़ा कराना चाहती थी। इसी वजह से उन्हें हटाकर अमित शाह को लाया गया। जिसके बाद कश्मीर से 370 हटाना हो, तीन तलाक पास करवाया हो या कैब शाह ने करीब छह महीने के अपने गृह मंत्री के कार्यकाल में कई नामुमकिन को मुमकिन बनाया है। उन सपनों को पूरा किया है जो सपने इस देश ने देखे थे। देश की आवाम ने देखे थे, आरएसएस ने देखे थे, जनसंघ ने देखे और नरेंद्र मोदी ने देखे थे।