नए रक्षा मंत्री की चुनौती, सेना का आधुनिकीकरण है जरूरी
इसमें कोई शक नहीं कि एनडीए सरकार प्रथम के दौर में सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक जैसे कदमों से रक्षा क्षेत्र और खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की प्रतिष्ठा बढ़ी है. लेकिन डिफेंस सेक्टर को अब भी साजो-सामान की कमी और बजट की कमी जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है. राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री बनाया गया है. नए रक्षा मंत्री की सबसे बड़ी चुनौती आधुनिकीकरण की होगी क्योंकि हमारी सेनाओं को काफी पुराने हथियारों और ताबूत कहलाने वाले विमानों से काम चलाना पड़ रहा है.
भारतीय वायु सेना को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए 126 राफेल विमानों की जरूरत थी. लेकिन 36 के लिए ही सौदा हुआ और उसमें भी अभी आपूर्ति में समय लगेगा. नौसेना की जिम्मेदारियां भी काफी बढ़ गई हैं और उसे भी अपने बेड़े में विस्तार करने की जरूरत है. सेना को आधुनिक राइफलें, तोप चाहिए. चीन और पाकिस्तान से भारत को जिस तरह की चुनौतियां मिल रही हैं, उसमें पुराने हथियारों से सेना दुश्मनों का मुकाबला नहीं कर सकती.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सेना के आधुनिकीकरण के लिए दोहरे मोर्चे पर काम करना होगा. सबसे पहले डिफेंस बजट को बढ़ाने की जरूरत है. रक्षा बजट अगर जीडीपी के अनुपात में देख जाए, तो अब तक का सबसे कम महज 1.4 फीसदी है, जबकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा साजो-सामान आयातक है. अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए भारत को लंबित रक्षा सौदों को तेजी से निपटाने, नए रक्षा सौदा करने के साथ ही स्वदेशी स्तर पर भी रक्षा साजो-सामान का उत्पादन बढ़ाना होगा. उम्मीद है कि एनडीए प्रथम सरकार द्वारा मेक इन इंडिया के तहत किए जा रहे प्रयासों से इसमें कुछ मदद मिलेगी.
मोदी सरकार ने शीर्ष प्रतिरक्षा ढांचे में कुछ बदलाव करने की प्रक्रिया शुरू की थी. संगठनों के ढांचे में बदलाव कर विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. इसकी वहज से निर्णय प्रक्रिया में एनएसए की भूमिका बढ़ गई है.
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने सेना के पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा है. रक्षा मंत्रालय को इसे मंजूर करना है और उसके नेतृत्व में ही यह काम आगे बढ़ेगा. इसके अलावा तीनों सेनाओं में एकीकरण बढ़ाना और सैन्य अभियानों में संयुक्त रूप से काम करने में आसानी भी लानी जरूरी है. इससे सेना प्रभावी होगी और नई तरह की चुनौतियों से निपट पाएगी.