सूफियों को क्यों दुनिया भर में निशाना बना रहे हैं आतंकी संगठन

काहिरा. मिस्र में सूफी समुदाय की मस्जिद पर हुए आतंकी हमले में 235 लोगों की मौत हो गई है। मिस्र में उदारवादी सूफी समुदाय पर यह अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है। शुक्रवार को जुमे की नमाज के वक्त मिस्र के उत्तर सिनाई प्रांत में हुए इस हमले की जिम्मेदारी अब तक किसी आतंकी संगठन ने नहीं ली है। हालांकि मिस्र की सरकारी न्यूज एजेंसी के मुताबिक इसमें इस्लामिक स्टेट का हाथ माना जा रहा है। यह पहला मौका नहीं है, जब आतंकियों ने सूफी समुदाय की मस्जिद को निशाना है। पाकिस्तान, सीरिया, जॉर्डन, यमन और मिस्र समेत कई देशों में आतंकियों ने पहले भी इन समुदायों की मस्जिदों को टारगेट कर हमले किए हैं। जानें, आखिर क्यों कट्टर इस्लाम के नाम पर मुस्लिम समुदाय के ही एक तबके को क्यों निशाना बना रहे हैं आतंकी…

 

सूफियों को खतरा मानता है इस्लामिक स्टेट: जानकारों के मुताबिक इस्लाम की कट्टर सलफी विचारधारा को मानने वाले इस्लामिक स्टेट समेत अन्य आतंकी संगठन सूफी इस्लाम को अपने लिए खतरा मानते हैं। सूफी मत में खुदा को अपने भीतर ही तलाशने का सिद्धांत दिया गया है। इसमें आत्मा और ईश्वर को एक ही माना गया है। आतंकी इस सिद्धांत को इस्लाम की मूल विचारधारा के खिलाफ मानते हैं।

युवाओं में पैठ से डरे आतंकी: इस्लामिक मामलों के जानकार कहते हैं कि अहिंसक विचारधारा और स्पष्ट पहचान के चलते युवा वर्ग सूफीवाद की ओर आकर्षित हो रहा है। इसके चलते इस्लामिक स्टेट को अपना आधार खिसकता दिख रहा है, जो कट्टर इस्लाम के नाम पर युवाओं को जिहाद की राह पर धकेलना चाहता है।

सेना जो न कर पाई, वह सूफियों ने किया: सूफीवाद के प्रभाव के चलते ऐसे सैकड़ों युवा हैं, जो आतंकी संगठन छोड़कर इस्लाम की उदारवादी धारा में शामिल हो गए। यह काम तमाम देशों की सेना भी नहीं कर पाई। इसके अलावा इस्लामिक स्टेट अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर सूफी मत को देखता है, जिसे वह खत्म कर देना चाहता है।

सूफियों को इस्लाम से अलग मानते हैं आतंकी: सूफी मत के लोगों के प्रार्थना के अलग तरीके, बड़े संतों के मकबरों के निर्माण और उनकी तीर्थयात्रा और आत्मा और खुदा को एक मानने के सिद्धांत को कट्टर सुन्नी इस्लाम को मानने वाले आतंकी संगठन इस्लाम के विरुद्ध मानते हैं। सूफियों को आतंकी संगठन बहुदेववादी मानते हैं, जबकि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह की ही बंदगी करने की बात है।

सूफी संतों के उभार को गलत मानते हैं आतंकी: सूफी मत में संतों की भी पूजा करने की परंपरा है। कट्टर इस्लामी आतंकियों का मानना है कि इससे मूर्तिपूजा को बढ़ावा मिलता है। इनका मानना है कि सिर्फ एक खुदा के अलावा किसी अन्य संत की पूजा करना, इस्लाम के सिद्धांतों के विपरीत है। ऐसे भी लोग हैं, जो सूफियों को इस्लाम के परे मानते हैं क्योंकि उनका कहना है कि वास्तविक इस्लाम में संतों की परंपरा का कोई स्थान नहीं है।

दुनिया भर में हैं 1.5 करोड़ सूफी: मिस्र की सबसे बड़ी इस्लामिक संस्था अल-अजहर के मुखिया समेत दुनिया भर में कुल 1.5 करोड़ सूफी हैं। ऐसे तमाम सूफी परिवार हैं, जिनका अरब देशों में बड़ा रसूख है।

मिस्र में क्यों निशाने पर हैं सूफी: मिस्र में सूफी समुदाय ताकतवर स्थिति में है। जानकारों के मुताबिक यह इस्लाम की ऐसी विचारधारा है, जो कट्टरता का निषेध करती है। इसका प्रभाव बढ़ने से कट्टर आतंकी संगठन अपनी हिंसक विचारधारा के लिए खतरा महसूस करते हैं। इसी के चलते ये लोग आतंकी संगठनों पर निशाने पर हैं।

पाकिस्तान में भी हुए हैं ऐसे हमले: इस साल फरवरी में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने सूफी समुदाय के संत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हमला किया था। इसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों को भी आतंकी निशाना बनाते रहे हैं।