बेहद जरूरी परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाए सरकार : प्रणब मुखर्जी
रविवार को संसद में अपने आखिरी भाषण के दौरान राष्ट्रपति बोले
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद में अपने आखिरी भाषण के दौरान सरकार को अध्यादेश लाने से बचने की नसीहत देने में हिचक नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि केवल बेहद जरूरी परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, वित्तीय मामलों में तो अध्यादेश का रास्ता बिल्कुल नहीं अपनाना चाहिए। राष्ट्रपति ने संसद में बिना चर्चा के ही विधेयक पारित करने पर चिंता जताते हुए कहा कि यह जनता काविश्वास तोड़ता है। वहीं हंगामे के कारण संसद के बाधित होने पर भी मुखर्जी ने बेबाक राय जाहिर करते हुए कहा कि इसकी वजह से सरकार से ज्यादा नुकसान विपक्ष का होता है।
रविवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में भावपूर्ण विदाई समारोह के दौरान प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संसद का सत्र नहीं चलने के दौरान तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कायर्पालिका को अध्यादेशों के जरिये कानून बनाने के असाधारण अधिकार दिए गए हैं। मगर उनका दृढ़ मत है कि अध्यादेश केवल बाध्यकारी परिस्थितियों में ही लाया जाना चाहिए। खासकर उन विषयों पर तो अध्यादेश बिल्कुल नहीं लाना चाहिए जिन पर संसद या संसदीय समिति विचार कर रही हो या जिन्हें संसद में पेश किया गया हो। उन्होंने बिना चर्चा के विधेयक पारित होने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की सलाह दी। कहा कि जब संसद कानून निर्माण की अपनी भूमिका निभाने में विफल हो जाती है या बिना चर्चा के कानून लागू करती है तो वह जनता द्वारा व्यक्त विश्वास को तोड़ती है। कानून बनाने से पहले व्यापक चर्चा होनी ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की बेंचों पर बैठकर बहस, परिचर्चा और असहमति के महत्व को उन्होंने बखूबी समझा है। इस अनुभव के आधार पर उनका साफ मानना है कि संसद में हंगामे से विपक्ष का ज्यादा नुकसान होता है क्योंकि इससे वह लोगों की चिंताओं को स्वर देने का अवसर खो देता है।
मुखर्जी ने जीएसटी कानून के संसद और विधानसभाओं से पारित होने को सहकारी संघवाद का शानदार उदाहरण बताया। कहा कि यह हमारी संसद की परिपक्वता को जाहिर करता है। प्रणब ने राष्ट्रपति के रूप में शपथ को याद करते हुए कहा कि पांच वर्षों में इसकी मूल भावना के साथ संविधान के संरक्षण और सुरक्षा का प्रयास किया। इस कार्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह और सहयोग का उल्लेख करना वह नहीं भूले और कहा कि इसका उन्हें काफी लाभ मिला।
इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्होंने पूरा श्रेय संसदीय लोकतंत्र को दिया। कहा कि वास्तव में वह इस संसद की एक कृति और ऐसे व्यक्ति हैं जिसके राजनीतिक दृष्टिकोण और व्यक्तित्व को लोकतंत्र के इस मंदिर ने गढ़ा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर सेवामुक्त होने के साथ ही वे संसद का हिस्सा नहीं रहेंगे मगर उदासी के भाव और रंग-बिरंगी स्मृतियों के साथ वे इस भव्य भवन से प्रस्थान कर रहे हैं। प्रणब के इस विदाई भाषण से पहले लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सभी सांसदों की ओर से अभिनंदन पत्र पढ़ा। इसमें उनके शानदार राजनीतिक जीवन, प्रशासनिक योगदान और संसदीय जीवन में गुरु की भूमिका निभाने का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति के रूप में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के अमूल्य योगदान की सराहना की गई।
वहीं, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इस मौके पर कहा कि देश के शासन में प्रणब दा के अमूल्य योगदानों का जिक्र किए बिना उनका अभिनंदन अधूरा होगा। इस क्रम में राज्यपालों के लिए मुखर्जी की ओर से पिछले हफ्ते आयोजित विदाई भोज में उन्हें दी गई नसीहत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने राज्यपालों से साफ कहा कि हमारा संविधान ऐसा है जिसमें दो कायर्कारी अथॉरिटी नहीं हो सकते। राज्यपालों की भूमिका केवल मुख्यमंत्री को सलाह देने तक सीमित है।