केंद्र ने कमर कस ली है, नक्सलियों से निपटने के लिए अब कोबरा कमांडो की भूमिका होगी अहम
नई दिल्ली (डेस्क)। करीब दो सौ साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को देश खुली हवा में सांस ले रहा था। देश के विकास की बुनियाद रखी जा रही थी। लेकिन दूसरी तरफ निराशा का भाव भी घर कर रहा था। पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजना में कल-कारखाने खोले गए। लेकिन उसका दूसरा पहलू ये भी था कि देश के अलग अलग हिस्सों में जनमानस के बीच असंतोष भी फैलता गया। सरकारी योजनाओं का विरोध शुरू हुआ और पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी ने एक उग्र विचार ने जन्म लिया जिसे नक्सल आंदोलन के नाम से जाना गया। लोगों के गुस्से को थामने के लिए सरकारों की तरफ से वादों की झड़ी लगी। लेकिन सच ये है कि देश के कई सूबे नक्सलियों के आतंक से प्रभावित हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, महाराष्ट्र लाल आतंक का सामना कर रहे हैं। सुकमा में हाल ही में सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत के बाद केंद्र सरकार ने कमर कस ली है कि अब ‘लाल आतंक’ को और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
नक्सलियों के खिलाफ तैयार हुई खास रणनीति : 8 मई 2017 को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। गृहमंत्री ने समाधान सूत्र के जरिए नक्सलियों से निपटने पर बल दिया। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में खासतौर से सुकमा में 2000 कोबरा कमांडो फोर्स की तैनाती होगी। नक्सली संगठनों के खिलाफ शॉर्ट टर्म, मीडियम टर्म और लांग टर्म कायर्योजना चलायी जाएगी। इन संगठनों के वित्तीय स्रोतों को बंद करने के लिए सरकार प्रभावी कदम उठाएगी। नक्सली गुटों पर कारर्वाई के लिए सेटेलाइट आधारित तकनीक, आईटी और संचार के उचित उपयोग की बात दोहरायी। एंटी नक्सल आपरेशन के दौरान यूएवी, पीटीजेड कैमरा, जीपीएस, थर्मल इमेज, रडार और सैटेलाइट का होगा उपयोग। वामपंथी और नक्सली संगठनों से जुड़े प्रमुख लक्ष्यों को ट्रैक करने के लिए खुफिया अधिकारी नियुक्त करने की बात कही।
नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारें विकास के बड़े बड़े दावे करती हैं। लेकिन नक्सली जिस तरह से हिंसा के जरिए पूरी व्यवस्था को चुनौती देते हैं, उससे कई सवाल भी खड़े होते हैं। क्या सरकारी विकास के दावे सिर्फ कागजों तक सीमित है, या नक्सलियों को डर लगने लगा है कि अगर विकास की किरण उनके इलाकों तक पहुंची तो वो अपनी प्रासंगिकता खो देंगे। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में आज से करीब 20 साल पहले पहुंचना नामुमकिन था। लेकिन सरकारी विकास योजनाओं के जरिेए कुछ कामयाबी मिली है जो नक्सली संगठनों को नागवार गुजरती है। इसके अलावा सुकमा और उससे जुड़े हुए जिलों की एक सच्चाई ये भी है कि अभी भी बड़े पैमाने पर वहां बेरोजगारी है जिसका फायदा नक्सली संगठन उठाते हैं।
कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को सलवा जुडूम का जनक माना जाता है। सलवा जुडूम की शुरुआत 2005 में महेंद्र कर्मा ने की थी। नक्सिलयों का मकसद महेंद्र कर्मा की हत्या कर सलवा जुडूम अभियान को खत्म करना था। सलवा जुडूम एक आदिवासी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘शांति का कारवां’। कम्युनिस्ट नेता रहे महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस में आने के बाद सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत की। इस अभियान में ग्रामीणों की फोर्स तैयार करना था, जो माओवादियों के खिलाफ लड़ सके। सलवा जुडूम अभियान में शामिल ग्रामीणों को 1500 से तीन हजार रुपये का भत्ता दिया था। 2005 में रमन सिंह के सरकार में आने के बाद उन्होंने इस अभियान को आगे बढ़ाया। सलवा जुडूम का असर भी देखने को मिला, ग्रामीणों ने नक्सलियों को शरण देना बंद कर दिया। जिसके बाद नक्सली बुरी तरह बौखला गए। माओवादी इस अभियान से नाराज हो गए। इसके साथ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सलवा जुडूम की वैधता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 2011 में देश की सर्वोच्च अदालत ने सलवा जुडूम को अवैध घोषित कर दिया।
क्या है लाल गलियारा : लाल गलियारा भारत के पूर्वी भाग का एक क्षेत्र है जहां नक्सलवादी संगठन सक्रिय हैं। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों को निरक्षरता, निर्धनता ने जकड़ रखा है। सरकारी स्रोतों के अनुसार जुलाई 2011 में करीब 83 जिले इस लाल गलियारे में आते थे।
लाल गलियारे की अर्थव्यवस्था : लाल गलियारे के क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था अक्सर कृषि जैसे प्राथमिक व्यवसायों पर टिकी है। उसमें विविधता नहीं होती। किसी-किसी इलाक़े में माइनिंग और वन-सम्पदा से सम्बंधित व्यवसाय भी चलते हैं। लेकिन उद्योग और अन्य विकसित कार्य नहीं हैं। यह अविकसित अर्थव्यवस्था इस क्षेत्र की तेज़ी से बढ़ती आबादी का पोषण करने में अक्षम हैं। इसके बावजूद इस क्षेत्र में भारत की प्राकृतिक सम्पदा का एक बड़ा भाग स्थित है, मसलन उड़ीसा में ‘भारत का 60 फीसद बॉक्साइट, 25 फीसद कोयला, 28 फीसद लौह खनिज, 92 फीसद निकल और 28 फीसद मैगनीज है।
अब बदल चुका है नक्सलबाड़ी : किसी जमाने में सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजा कर पूरा दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने वाले नक्सलबाड़ी का चेहरा पूरी तरह बदल गया है। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में नेपाल की सीमा से लगा यह कस्बा अपने नक्सली अतीत और आधुनिकता के दौर के बीच फंसा है।