ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो : इलाहाबाद हाईकोर्ट

यह भी कहा कि कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो।


नई दिल्ली (एजेंसी)। देश भर में तीन तलाक का मुद्दा अभी गरमाया हुआ है। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि लिंग के आधार पर भी मूल व मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो। कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है। फतवे पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तीन तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीड़न के मुकदमे की सुनवाई करते हुए तीन तलाक और फतवे पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि कोई पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। तीन तलाक असंवैधानिक है। यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है।