कांग्रेस पार्टी को प्रियंका गांधी के संवाद कौशल से काफी उम्मीदें हैं

नई दिल्ली। क्या प्रियंका गांधी, राहुल गांधी का ब्रह्मास्त्र हैं, जिनका निशाना केवल भारतीय जनता पार्टी है? या कांग्रेस अध्यक्ष के निशाने पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (एसपी)-बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) गठबंधन भी है? बीजेपी जाहिर तौर पर कांग्रेस की मुख्य विरोधी है लेकिन भारत की राजनीति को बमुश्किल ही श्वेत-श्याम में वर्णित किया जा सकता है। यहां कुछ अस्पष्ट स्थिति भी है, जो दोस्तों और दुश्मनों के आधार को धुंधला कर देती है। बनते-बिगड़ते सियासी समीकरणों के बीच माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी अपने बातचीत के कौशल और भीड़ के साथ एक जीवंत और सहानुभूतिपूर्ण संवाद कौशल से कांग्रेस में एक राजनीतिक ऊर्जा का प्रवाह करेंगी, जिससे प्रधानमंत्री बनने का उनके भाई का दावा और मजबूत हो सकता है।
दरअसल, कांग्रेस पार्टी को प्रियंका गांधी के संवाद कौशल से काफी उम्मीदें हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी.कुमारस्वामी पहले ही, राहुल गांधी को धर्मनिरपेक्ष दलों का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने के डीएमके नेता एम.के.स्टालिन के प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं। धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के बीच इस उठापटक से बीजेपी खुश होगी। इसके साथ ही बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश को कांग्रेस के लिए ‘अच्छे दिन’ कहा।

शिवसेना के एक प्रवक्ता ने हालांकि इंदिरा गांधी और उनकी पोती के बीच आमतौर पर स्पष्ट समानता को दोहराया है। इसके अलावा एक और प्रवक्ता ने उस ‘रिश्ते’ की बात की, जो नेहरू-गांधी परिवार के साथ भारत के लोगों का बना है। बीजेपी नरेंद्र मोदी की वाकपटुता पर निर्भर है लेकिन इस क्षेत्र में प्रियंका गांधी के हमलों से बीजेपी को सावधान रहना होगा क्योंकि वह इस तरह की चुनौती पेश कर सकती हैं, जिसका बीजेपी ने बीते साढ़े चार वर्षों में सामना नहीं किया है। बीजेपी को इसके अलावा भीड़ को आकर्षित करने की प्रियंका गांधी की कला को भी सावधानी से देखना होगा कि क्या वह नेहरू और इंदिरा गांधी के करिश्मे को दोहरा सकती हैं।

उधर, इस बात के संकेत हैं कि एसपी और बीएसपी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राज्यस्तर पर छोटा गठबंधन कर 134 वर्ष पुरानी पार्टी को 80 में से केवल दो सीटें दीं, जिससे कांग्रेस नाराज है। गठबंधन से बाहर रखने के झटके को कुछ उदार शब्दों से सहज बनाने की कोशिश की गई और उसके जवाब में एसपी के अखिलेश यादव ने भी राहुल गांधी के प्रति ‘सम्मान’ का भाव दिखाया लेकिन बीएसपी की मायावती कठोर बनी रहीं। उन्होंने इससे पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे की बातचीत अचानक समाप्त कर दी थी।