कोर्ट ने पूछा, महिला को यह अधिकार दे दिया जाए कि वह एक साथ तीन तलाक देने पर तलाक को स्वीकार ना करें

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने AIMPLB से पूछा कि क्या ये मुमकिन है कि महिला को यह अधिकार दे दिया जाए कि वह एक साथ तीन तलाक देने पर तलाक को स्वीकार ना करें। इस क्लॉज़ को निकाहनामा में भी शामिल किया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक के तुरंत बाद भी शादी नहीं टूट सकती है।
कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे को तभी लागू किया जा सकता है जब काज़ी इस मुद्दे को जमीनी स्तर तक लागू करें। हालांकि AIMPLB की ओर से युसुफ हातिम ने कहा कि AIMPLB की एडवाइजरी को मानना सभी काज़ी के लिए जरूरी नहीं है। हालांकि वे हमारे सुझाव को मान सकते हैं।
बोर्ड ने कोर्ट को 14 अप्रैल 2017 को पास किये गए एक फैसले के बारे में भी बताया, जिसमें कहा गया था कि ट्रिपल तलाक एक पाप है, और ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।
आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने एक अंग्रेजी अखबार में छपी सर्वे रिपोर्ट का हवाला दिया। सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि मुसलमानों में एक साथ तीन तलाक वाले महज 0.4 फीसद मामले हैं। सिब्बल ने दलील दी कि अगर कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल देता है तो ये घर के मामलों में दाखिल होने जैसा होगा। यानी ये तरीका दूसरे मामलों में भी जारी रह सकता है। जमीयत उलेमा-ए हिंद की तरफ से वकील राजू रामचंद्रन ने कोर्ट के सामने कहा कि अगर तीन तलाक देने के बाद कोई पति अपनी पत्नी के साथ रहता है तो वो गुनाह होगा।
इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं। कपिल सिब्बल ने कहा कि इस्लाम धर्म ने महिलाओं को काफी पहले ही अधिकार दिये हुए हैं। परिवार और पर्सनल लॉ संविधान के तहत हैं, यह व्यक्तिगत आस्था का विषय है। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जब कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या कोई ई-तलाक जैसी भी चीज है।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह समय की कमी के कारण सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे पर ही सुनवाई करेगी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर भी सुनवाई का रास्ता भविष्य के लिए खुला है। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर शीर्ष अदालत तीन तलाक सहित तलाक के सभी तरीकों को निरस्तर कर देती है तो मुस्लिम समाज में शादी और तलाक के नियमन के लिए नया कानून लाया जाया जाएगा। केंद्र ने यह भी आग्रह किया कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दों को मौजूदा सुनवाई से अलग नहीं किया जाना चाहिए। इस पर सर्वोच्च अदालत ने भरोसा दिया कि ये सभी पहलू अपनी जगह मौजूद हैं और इन पर बाद में गौर किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया , मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को खत्म कर चुके हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा, अगर अदालत तुरंत तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो हम लोगों को अलग-थलग नहीं छोड़ेंगे। हम मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएंगे।
आपको बता दें कि ट्रिपल तलाक को लेकर 11 मई से सुनवाई चल रही है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम सिर्फ ये समीक्षा करेंगे कि तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं। कोर्ट इस मुद्दे को इस नजर से भी देखेगा कि क्या तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है या नहीं।।