जबरन हुआ मेंटल चेकअप तो डीजीपी को कर दूंगा सस्पेंड : जस्टिस कर्णन

नई दिल्ली। कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन ने कहा है कि अगर वेस्ट बंगाल के डीजीपी ने उनका जबर्दस्ती मेंटल हेल्थ चेकअप कराया तो हो सकता है वो उन्हें सस्पेंड कर दें। इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन की मेंटल कंडीशन की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड बनाने आॅर्डर दिया। बता दें कि जस्टिस कर्णन ने नोटबंदी के बाद पीएमओ को लेटर लिखकर कुछ जजों के करप्ट होने का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अदालत की अवमानना माना था।
सुप्रीम कोर्ट ने वेस्ट बंगाल के डीजीपी को जस्टिस कर्णन का मेंटल चेकअप कराने में मेडिकल बोर्ड की मदद करने को कहा है। जस्टिस कर्णन का चेकअप 4 मई को किया जाना है और इसकी रिपोर्ट 8 मई तक देनी होगी। इस पर जस्टिस कर्णन ने कहा, “अगर वेस्ट बंगाल के डीजीपी मेरा जबरन मेंटल हेल्थ चेक करने आते हैं तो हो सकता है कि स्वत: संज्ञान लेते हुए मैं उन्हें सस्पेंड कर दूं। दिल्ली के डीजीपी को सातों आरोपी जजों (मामले की सुनवाई कर रही बेंच के जज) को एम्स में ले जाकर उनका मेंटल चेकअप करवाने को कहूं।”
बता दें कि 31 मार्च को पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 4 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करने का आॅर्डर दिया था। उम्मीद थी कि जस्टिस कर्णन या तो माफी मांगेंगे या फिर लगाए गए आरोपों पर कायम रहेंगे। लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान वो कोर्ट में हाजिर ही नहीं हुए। 31 मार्च को पेशी के दौरान जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से कहा था कि आप मेरा ज्यूडिशियल कामकाज बहाल कर दें, नहीं तो मेरी दिमागी हालत सही नहीं हो पाएगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम देख रहे हैं उनकी (जस्टिस कर्णन) दिमागी हालत ठीक नहीं लगती और उन्हें समझ भी नहीं आता कि हकीकत में वो क्या कर रहे हैं। कोर्ट ने उनकी मांग खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने इस मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के सातों जजों के खिलाफ आॅर्डर जारी कर दिया था। जस्टिस कर्णन का आरोप था कि इन जजों ने ‘प्रिंसिपल आॅफ नैचुरल जस्टिस’ का वॉयलेशन किया है।
जस्टिस कर्णन ने 23 जनवरी को पीएम को लेटर लिखकर 20 जजों पर करप्शन का आरोप लगाया था। इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और मद्रास हाईकोर्ट के मौजूदा जज शामिल हैं। जस्टिस कर्णन ने इस मामले की जांच कराने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी पूछा था कि क्यों न इसे कोर्ट की अवमानना माना जाए। कोर्ट ने उन्हें मामले की सुनवाई होने तक सभी ज्यूडिशियल और एडमिनिस्ट्रिेटिव फाइलें कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लौटाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 13 फरवरी को कोर्ट में पेश होने को कहा था, लेकिन वो हाजिर नहीं हुए। बता दें कि यह पहला केस था जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज को अवमानना का नोटिस भेजा था। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाली सात जजों की बेंच ने 10 मार्च को जस्टिस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। उन्हें 31 मार्च को कोर्ट में हाजिर करने का आॅर्डर दिया गया था।
कर्णन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को लेटर लिखकर यह आरोप भी लगा चुके हैं कि दलित होने की वजह से उन पर यह एक्शन लिया जा रहा है। उन्होंने अपने लेटर में लिखा था, ‘यह आॅर्डर (सुप्रीम कोर्ट का नोटिस) साफ तौर पर बताता है कि ऊंची जाति के जज कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और अपनी ज्यूडिशियल पावर का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।’
जस्टिस कर्णन 2011 में मद्रास हाईकोर्ट में जज थे। उस वक्त उन्होंने एक साथी जज के खिलाफ जातिसूचक शब्द कहने की शिकायत दर्ज कराई थी। 2014 में मद्रास हाईकोर्ट में जजों के अप्वाइंटमेंट को लेकर वो तब के चीफ जस्टिस के चेंबर में घुस गए थे और बदसलूकी की थी। इसके अलावा, जस्टिस कर्णन ने उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने पर इस मामले की खुद सुनवाई शुरू कर दी थी। बाद में इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन लगाई थी। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।