‘भूमि’ की शूटिंग खत्म कर खुश हैं संजय दत्त, 22 सितंबर को सिनेमाघरों में देगी दस्तक
मुंबई। संजय दत्त खुश भी थे और थोड़ा इमोशनल भी आखिरकार जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपनी पहली कमबैक फिल्म ‘भूमि’ की शूटिंग खत्म कर ली। इस मौके पर मुंबई से 60 किलोमीटर दूर नायगांव में फिल्म की लोकेशन पर संजय दत्त ने खुलकर अपनी फिल्म के बारे में बात की, अपने बच्चों के बारे में भी बोले संजय दत्त।
मैं बहुत खुश हूं और ऐसा लग रहा है जैसे कल ही शूटिंग शुरू हुई थी, यहां सिर्फ छोटा सा पैचवर्क है जो हम शूट कर रहे हैं, बहुत अच्छा काम हुआ है। निर्देशक उमंग कुमार ने बहुत अच्छी फिल्में बनाई हैं और मुझे उम्मीद है दशर्कों को ‘भूमि’ भी बहुत पसंद आएगी और फिल्म के प्रोड्यूसर संदीप सिंह और भूषण कुमार दोनों छोटे भाई की तरह हैं। सब ने बहुत ख्याल रखा और बेहद दिल से काम किया है फिल्म से जुड़े हर शख्स ने। सेट पर बहुत खुशनुमा माहौल रहा आज भी मेरा काम खत्म होने की खुशी में डायरेक्टर उमंग कुमार और निर्माता संदीप ने केक काटा।
ऐसा कहा जाता है स्वमिंग और साइकलिंग अगर बहुत वक्त ना की जाए तो भी नहीं भूल सकते क्या ये बात एक्टिंग पर लागू होती है?
बिल्कुल लागू होती है, शुरू में थोड़ी से झिझक थी, लेकिन जैसे ही पहला शॉट ओके हुआ फिर सब नॉर्मल हो गया, ऐसा लगा नहीं कि मैं कैमरा 5 साल बाद फेस कर रहा था, दरअसल मुझे तलाश थी एक सच्ची और दिल को छू लेने वाली कहानी की और ये फिल्म वैसी ही है, इस लिए सब आसान हो गया। कमबैक के लिए ‘भूमि’ से बेहतर फिल्म कोई और नहीं हो सकती थी।
मेरे बच्चे बहुत खुश और एक्साइटेड थे वो सेट पर तीन चार बार आए हैं और उन्हें शूटिंग देखने में बहुत मजा आता है। लेकिन दोनों बहुत समझदार हैं उन्हें सब पता है कि ये सब नकली है। एक दिन मेरा इमोशनल सीन था, तो मैंने ग्लिसरीन लगाई थी और मैंने दोनों से बोला देखो पापा रो रहे हैं, दोनों हंसने लगे और बोले आप झूठमूट मे रो रहे हैं, आपने आंख में कुछ लगाया है। आज की जेनरेशन बहुत इंटेलीजेंट है। त्रिशाला जब छोटी थी तब मैं उसे वक्त नहीं दे पाया लेकिन वो गलती मैं दोहराना नहीं चाहूंगा, हालांकि आज त्रिशाला अपने करियर में बहुत अच्छा कर रही है और मुझे उस पर बहुत फक्र है, हमारी अक्सर फोन पर बात भी होती है।
मान्यता के लिए क्या कहेंगे ? उनके बगैर कुछ नहीं हो सकता, मान्यता ने सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि मेरे पूरे घर को संभाला, चार साल अकेले बच्चों की परवरिश की, ये आसान बात नहीं है। सुबह मैं अपने बच्चों के साथ ब्रेकफास्ट करता हूं, फिर उन्हें स्कूल छोड़ता उसके बाद जिम और अपने आॅफिस में मीटिंग्स करता हूं, दोपहर को फिर बच्चों के साथ ही रहता हूं, मेरी कोशिश होती है ज्यादा से ज्यादा वक्त उनके साथ ही गुजारूं।
आज आपको डैशिंग हीरो के बदले पिता के किरदार ज्यादा मिल रहे हैं?
ये तो होना ही था, वक्त के साथ मैं भी आगे बढ़े चुका हूं। आज मैं उम्मीद भी नहीं करता कि हीरो की तरह नाच गाना करूं, इस उम्र में ठीक भी नहीं लगेगा। हॉलीवुड के कुछ एक्टर्स हैं जैसे मेल गिब्सन और केविन कॉस्नर उनकी तरह ही काम करना चाहूंगा। जो रोल मेरी उम्र को सूट करे उस पर ध्यान देता हूं।
सेट पर सब कह रहे थे अगले साल सारे अवॉर्ड आपको मिल सकते हैं ‘भूमि’ के लिए?
(हंसकर) अवॉर्ड का तो पता नहीं लेकिन रिवॉर्ड मिल जाए वहीं बहुत है, सबको काम अच्छा लगे इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं सोचता।