किसी फिल्म या डॉक्युमेंट्री में राष्ट्रगान बजे तो खड़े होने की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अगर किसी फिल्म या डॉक्युमेंट्री में राष्ट्रगान बजता है तो उस दौरान आॅडियंस को खड़े होने की जरूरत नहीं है। किसी को खड़े होने के लिए मजबूर भी नहीं किया जा सकता। हालांकि, लोगों को सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले बजाए जाने वाले राष्ट्रगान पर खड़े होना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर बहस होना जरूरी है। जस्टिस दीपक मिश्रा और आर. भानुमति की बेंच ने नेशनल एंथम पर नवंबर में दिए अपने इंटेरिम आॅर्डर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
हालांकि बेच ने साफ किया, जब राष्ट्रगान फिल्म की स्टोरीलाइन, न्यूजरील या डॉक्यूमेंट्री के तहत बजे तो उस पर खड़े होना जरूरी नहीं है। बेंच ने कहा कि पिटिशनर्स इस मसले पर बहस चाहते हैं। मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल तय की गई है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर में आॅर्डर दिया था कि सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना होगा। इस दौरान स्क्रीन पर तिरंगा नजर आना चाहिए। साथ ही, राष्ट्रगान के सम्मान में सिनेमा हॉल में मौजूद सभी लोगों को खड़ा होना होगा। सुप्रीम कोर्ट में इस आॅर्डर को लेकर कई पिटीशन लगाई गई हैं, जिनमें इस आॅर्डर को वापस लेने की मांग की गई है। पिटिशनर्स का कहना है कि ये आॅर्डर अधिकारों का हनन करते हैं, कोर्ट को सिनेमा जैसे इंटरटेनमेंट जगहों पर ये लागू नहीं करना चाहिए। बता दें कि हाल ही में मुंबई में दंगल फिल्म के एक सीन में राष्ट्रगान बजने पर एक बुजुर्ग नहीं उठे तो उनकी सिनेमा हॉल में पिटाई कर दी गई थी।
जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने नवंबर में दिए अपने आॅर्डर में कहा था कि राष्ट्रगान बजाने के दौरान सिनेमा हॉल के गेट बंद कर दिए जाएं, ताकि कोई इसमें खलल न डाल पाए। राष्ट्रगान पूरा होने पर सिनेमा हॉल के गेट खोल दिए जाएं। राष्ट्रगान को ऐसी जगह छापा या लगाया नहीं जाना चाहिए, जिससे इसका अपमान हो।
राष्ट्रगान से कमर्शियल बेनिफिट नहीं लेना चाहिए। राष्ट्रगान को आधा-अधूरा नहीं सुनाया या बजाया जाना चाहिए। इसे पूरा करना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह आॅर्डर 10 दिन में लागू करने को कहा था। साथ ही, सभी स्टेट और यूनियन टेरेटरी से इस बारे में जानकारी देने को कहा था।