तय समय पर ही पेश होगा बजट : केंद्र सरकार

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों मे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दल आम बजट की तारीख एक फरवरी से आगे बढ़ाना चाहता हैं। लेकिन सरकार विपक्ष की मांग के आगे झुकने को तैयार नहीं दिख रही। वैसे पिछली सरकार ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर परम्परा से हटकर एक आम बजट 16 मार्च को पेश किया था।
संसद का बजट सत्र शुरु होने में 25 दिन का वक्त बाकी है, लेकिन उसके पहले ही सत्ता और विपक्ष के बीच तकरार खुल कर देखने को मिल रहा है। इसी सिलसिले में गुरुवार को कांग्रेस समेत विभिन्न विपक्षी दल ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने गुहार लगाई कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बजट की तारीख एक फरवरी से आगे बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग पहल करे। हालांकि आयोग पहले ही साफ कर चुका है कि इस बारे में प्रतिवेदन उसे मिल चुके हैं और वो उस पर विचार करेगा।
लोकसभा चलाने के तौर-तरीकों में नियम संख्या 204 में साफ तौर पर लिखा है कि राष्ट्रपति जिस तारीख को बजट पेश करने का निर्देश देंगे, उसी तारीख को बजट पेश होगा। दूसरी ओऱ संविधान की धारा 112 के तहत भी कहा गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी से ही सरकार खर्चों और आमदनी का सालाना लेखा-जोखा यानी बजट पेश करेगी। इन दोनों के आधार पर कहा जा सकता है कि बजट की तारीख तय करने के मामले में राष्ट्रपति की बात ही अंतिम मानी जाएगी। वैसे बजट की तारीख बदलने के पीछे कांग्रेस के पास एक मजबूत आधार है। वो यह है कि 2012 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने खुद ही उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से बजट 16 मार्च को पेश करने की सिफारिश की और फिर उस पर अमल किया।
फिलहाल, ध्यान देने की बात ये है कि बजट तैयार करना और पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है, लेकिन ऐसा कोई कानून या नियम नहीं जो कहता है तो उसे फरवरी के आखिरी कार्यदिवस को ही पेश करना है। यह सिर्फ परम्परा है। सरकार के लिए ये भी जरुरी है कि 31 मार्च तक खर्चों से जुड़े बजट के कुछ हिस्सों को संसद से मंजूर करा ले, ताकि एक अप्रैल से अपने कमर्चारियो को वेतन देने के साथ तमाम दूसरे खर्चों के लिए पैसा उपलब्ध हो। साथ ही नियम ये भी कहता है कि टैक्स प्रस्तावों से जुड़ा फाइनेंस बिल हर हालत में पेश की गई तारीख से 75 दिनों के भीतर संसद से पारित करना होगा। सरकार के रुख से साफ लग रहा है कि वो विपक्ष के मांगों के हिसाब से बजट कार्यक्रम में फेरबदल नहीं करेगी।
मुमकिन है कि सरकार चुनाव में जा रहे पांच राज्यों के लिए बजट में कोई विशेष नीति का नहीं करेगी। इस तरह से वो चुनाव आयोग के निर्देशों का पूरी तरह से पालन कर सकेगी। लेकिन देश में और भी 24 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं और जहां देश की तीन चौथाई से ज्यादा आबादी रहती है और उनके लिए केंद्र की नीतियो को तो नहीं टाला जा सकता। वैसे भी मोदी सरकार कई महीनों से कह रही है कि बजट फरवरी 28 के बजाए पहले पेश होगा। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बीते साल 26 अक्टूबर को सचिवों के साथ एक बैठक में कहा था कि परियोजनाओं और योजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय बजट को लगभग एक महीने पहले पेश किया जाएगा। उन्होंने सभी राज्यों से अपनी योजनाओं को इसके अनुरूप ही संरेखित करने की अपील की ताकि वे इस कदम का अधिक से अधिक लाभ उठा सकें।
सरकार का मानना है कि बजट की प्रक्रिया पूरी होते-होते कारोबारी साल के पहले तीन महीने बीत जाते हैं जिससे खर्च शुरु करने में देरी होती है। इससे परियोजनाओं पर असर पड़ता है। इसी के मद्देनजर कोशिश यही है कि 31 मार्च तक बजट की प्रक्रिया पूरी कर ली जाए और नए कारोबारी साल के पहले दिन यानी पहली अप्रैल से उस पर अमल होना शुरु हो जाए।