अभी भी देर नहीं हुई है, सुलह हो सकती है : आजम खान

लखनऊ/नई दिल्ली। सपा में चल रही उठापटक के बीच सुलह की कोशिशें भी जारी हैं। मंगलवार को अखिलेश, मुलायम के लखनऊ स्थित आवास पर मिलने पहुंचे। नेताजी सुबह दिल्ली में थे। उनकी अखिलेश से फोन पर भी बात हुई थी। बाद में कहा कि अब लखनऊ पहुंचकर ही बात होगी। इस बीच अखिलेश खेमा चुनाव आयोग से मिला। इसमें रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल समेत कई नेता थे। रामगोपाल ने कहा कि अखिलेश को 90% विधायकों का सपोर्ट है। दिल्ली पहुंचे आजम खान ने कहा, ‘अभी भी देर नहीं हुई है। सुलह हो सकती है।’ वहीं, चुनाव आयोग पार्टी के सिंबल को फ्रीज कर दोनों धड़ों को अलग-अलग चिह्न दे सकता है।
सूत्रों की मानें तो अगर अखिलेश को ‘साइकिल’ चुनाव चिह्न नहीं मिलता है तो वे मोटरसाइकिल को सिंबल के तौर पर अपना सकते हैं। रामगोपाल ने चुनाव आयोग को बताया, ‘अखिलेश यादव को 90% एमएलए का सपोर्ट हासिल है। वे ही पार्टी को लीड कर रहे हैं। लिहाजा इस धड़े को ही सपा मानना चाहिए।’ मुलायम सिंह यादव ने शनिवार को 393 कैंडिडेट्स की मीटिंग बुलाई थी। लेकिन उनके यहां सिर्फ 17 विधायक और 103 उम्मीदवार पहुंचे। बाद में यह मीटिंग रद्द हो गई। अखिलेश के घर हुई मीटिंग में 224 में से 207 विधायक शामिल हुए। 37 एमएलसी और 53 कैंडिडेट्स भी शामिल हुए।
इस लिहाज से अखिलेश के पास 90% एमएलए हैं। अखिलेश खेमे के एमएलसी राजपाल कश्यप का कहना है, ‘रविवार को जो अधिवेशन बुलाया गया था, उसमें अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव पर 90% लोगों ने दस्तखत किए। ऐसा करने को लेकर पार्टी पदाधिकारियों में गजब का उत्साह था। उसमें एमपी, एमएलए समेत जिला पंचायत के कई लोग शामिल थे।’ ‘अधिवेशन डेलिगेट्स की लिखित मांग पर बुलाया गया था। यह पूरी तरह वैध था। कुछ लोग नेताजी को बरगला कर परेशानी खड़ी कर रहे हैं।’ कश्यप ने कहा, ‘हम साइकिल सिंबल अपने पास रखेंगे। लेकिन बड़ी बात ये है कि अखिलेश खुद अपने आप में सिंबल हैं। चुनाव में जिसके पास लोगों का सपोर्ट होता होता है, वही मायने रखता है।’
वहीं, किरणमय नंदा का कहना है, ‘पार्टी सिंबल बड़ी चीज नहीं है। हमारे पास सबकुछ है। हम नेताजी से अलग नहीं, बल्कि उनके साथ हैं।’ इसकी संभावना काफी कम है। क्योंकि इलेक्शन कमीशन की सुनवाई काफी लंबी और विस्तृत होती है। इसमें कम से कम 6 महीने का वक्त लगता है। इसको देखते हुए आयोग पार्टी के सिंबल को फ्रीज कर सकता है और दोनों धड़ों को एक ही नाम से टेम्परेरी चुनाव चिह्न दे दिया जाएगा।
– 1979 में Congress (I) और  Congress (U) जैसे दो गुटों और 1980 में बीजेपी और जनता पार्टी को चुनाव आयोग ने इंटरिम आॅर्डर के तहत मान्यता दी थी। लिहाजा सपा के दोनों गुटों को मान्यता मिल सकती है।
मंगलवार को सपा नेता आजम खान दिल्ली पहुंचे। उन्होंने ने कहा, ‘जो भी हो रहा है वो चिंता की बात है। लेकिन अभी भी वक्त है। मसला हल हो सकता है।’ दो लेटर्स पर अलग-अलग साइन पर उन्होंने कहा, ‘एक लेटर पर मुलायम का छोटा साइन है, दूसरे पर बड़ा। केवल एक्सपर्ट ने दस्तखत को गलत बताया है। नेताजी ने ऐसा कुछ नहीं कहा।’
बता दें, रविवार को लखनऊ में हुए सपा के अधिवेशन में अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, इस अधिवेशन को मुलायम सिंह ने अवैधानिक बताते हुए रामगोपाल को पार्टी से 6 साल के लिए बाहर कर दिया था। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का मानना है कि चुनाव चिह्न पर फैसला देने में चुनाव आयोग को वक्त लग सकता है। ऐसे में, हो सकता है कि आयोग साइकिल सिंबल को जब्त कर दोनों धड़ों को अलग-अलग चुनाव चिह्न आवंटित कर दे।
सीनियर जर्नलिस्ट रतनमणि लाल त्रिपाठी का कहना है कि अगर मुलायम और अखिलेश अलग-अलग सिंबल पर चुनाव लड़ते हैं तो इसमें मुलायम को ज्यादा फायदा होगा । ‘दरअसल आज भी जो परंपरागत वोट है वो सपा का सिंबल मुलायम को ही मानता है । वो फिर चाहे मुस्लिम या फिर यादव वोट हो।’ ‘वहीं, मुलायम ये कह सकते हैं कि असली पार्टी उनकी है और उन्होंने किसी को पार्टी से अलग नहीं किया। बल्कि लोगों ने अलग होकर अपनी पार्टी बना ली।’ ‘मौजूदा स्थिति में ज्यादातर विधायक अखिलेश के साथ दिख रहे हैं लेकिन अगर ग्राउंड रिपोर्ट देखे तो वहां पर मुलायम ही सपा है न कि अखिलेश।’ ‘अखिलेश को पार्टी का नया चेहरा माना जाता है। ऐसे में उन्हें सिर्फ अपनी इमेज का फायदा तो मिल सकता है लेकिन पार्टी का परंपरागत वोटर अभी भी मुलायम सिंह के साथ ही है। फिर लोगों को ये भी लगता है कि मुलायम ने अखिलेश को अलग नहीं किया बल्कि अखिलेश ने खुद पार्टी से अलग होकर अपना गुट बना लिया।’ जर्नलिस्ट योगेश श्रीवास्तव का कहना है कि अखिलेश और मुलायम दोनों को इससे नुकसान होगा। लेकिन अखिलेश का नुकसान ज्यादा होगा।
‘नए सिंबल को इतनी जल्दी वोटरों के लिए स्टेबलिश करना आसान नही होगा।’ ‘हालांकि अगर दोनो गुटों की बात करे तो अखिलेश को ज्यादा नुकसान होगा और मुलायम को फायदा होगा।’ ‘यूपी में करीब 7-8% यादव हैं जबकि 19 फीसदी मुस्लिम हैं। ये सपा का परंपरागत वोट बैंक है। कांग्रेस से खिसकने के बाद आज भी सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर मुलायम के नजदीक हैं।’ ‘अतीक अहमद और आजम खान का अखिलेश विरोध कर चुके हैं। चूंकि ये दोनों मुलायम के करीबी हैं तो फायदा उन्हें ही हुआ।’